मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता,
अब इस से ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता!
बस तू मिरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे,
फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता!
दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें,
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता!
ऐ मौत मुझे तू ने मुसीबत से निकाला,
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता!
इस ख़ाक-ए-बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी,
क्या इतना करम बाद-ए-सबा हो नहीं सकता!
पेशानी को सज्दे भी अता कर मिरे मौला,
आँखों से तो ये क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता!
दरबार में जाना मिरा दुश्वार बहुत है,
जो शख़्स क़लंदर हो गदा हो नहीं सकता!