अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए,
फिर से मिरे चेहरे पे ये दाने निकल आए!
माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मिरा रस्ता,
मिट्टी के हटाते ही ख़ज़ाने निकल आए!
मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए!
ऐ रेत के ज़र्रे तेरा एहसान बहुत है,
आँखों को भिगोने के बहाने निकल आए!
अब तेरे बुलाने से भी हम आ नहीं सकते,
हम तुझ से बहुत आगे ज़माने निकल आए!
एक ख़ौफ़ सा रहता है मिरे दिल में हमेशा,
किस घर से तिरी याद न जाने निकल आए!