अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए

अलमारी से ख़त उस के पुराने निकल आए,
फिर से मिरे चेहरे पे ये दाने निकल आए!

माँ बैठ के तकती थी जहाँ से मिरा रस्ता,
मिट्टी के हटाते ही ख़ज़ाने निकल आए!

मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए!

ऐ रेत के ज़र्रे तेरा एहसान बहुत है,
आँखों को भिगोने के बहाने निकल आए!

अब तेरे बुलाने से भी हम आ नहीं सकते,
हम तुझ से बहुत आगे ज़माने निकल आए!

एक ख़ौफ़ सा रहता है मिरे दिल में हमेशा,
किस घर से तिरी याद न जाने निकल आए!

मुनव्वर राना

मुनव्वर राना भारत के एक प्रसिद्ध उर्दू हिंदी के कवि हैं। जिनकी माँ को समर्पित कविताएं और ग़ज़लें विश्व प्रसिद्ध हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *